1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्तियों को नियंत्रित करते हुए ब्रिटिश सरकार ने भारत के शासन को अपने हाथ में ले लिया । यह उद्घोषणा नवंबर,1858 को इलाहाबाद के मिंटो पार्क में महारानी विक्टोरिया द्वारा दिये गए घोषणा-पत्र को तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड कैनिंग द्वारा पढ़ने के साथ हुई व तत्समय एक दिन के लिए इलाहाबाद को भारत की राजधानी भी बनाया गया था । उस समय इलाहाबाद उत्तर पश्चिम प्रांत की भी राजधानी थी , अंग्रेजो ने यहां पर उच्च न्यायालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं अनेक संस्थानों की भी स्थापना की थी।
पब्लिक सर्विस कमीशन 1886-87 ने प्रशासनिक सेवाओं को तीन श्रेणियों में बांटा।
(1) भारतीय सिविल सेवा (आई0सी0एस0),
(2) प्रांतीय सिविल सेवा (पी0सी0एस0), और
(3) अधीनस्थ सेवाएं।
अंतिम दो को विशेष रूप से भारतीयों द्वारा भरा जाना था। भारत सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन, इन्हें या तो परीक्षाओं के माध्यम से या नामांकन के माध्यम से भरा जाना था। जैसे-जैसे जटिलताएँ बढ़ती गईं, और सेवाएँ सृजित होती गईं, व्यवस्था पर्याप्त नहीं पाई गई। इसके बाद 1919 का भारत सरकार अधिनियम आया, जिसकी धारा 96D में विभिन्न सेवाओं के वर्गीकरण और प्रत्येक की भर्ती के तरीकों का प्रावधान था परन्तु वह भी नाकाफी पाया गया। इसलिए, जून 1923 में, भारत में सुपीरियर सिविल सर्विसेज पर एक रॉयल कमीशन फेरहम के लॉर्ड ली के अधीन नियुक्त किया गया था। 1924 के ली आयोग ने पहली बार “सेवाओं पर अनुशासनात्मक नियंत्रण को विनियमित करने और प्रयोग करने के लिए” पांच सदस्यों को एक लोक सेवा आयोग के निर्माण के लिए प्रावधान किया। इस प्रकार भारत का लोक सेवा आयोग 1926 में अस्तित्व में आया।1929 में मद्रास प्रेसीडेंसी के लिए प्रथम प्रांतीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई। 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने संघीय सिद्धांत पेश किया और तदनुसार, संघीय लोक सेवा आयोग के साथ-साथ प्रांतीय लोक सेवा आयोगों के लिए प्रस्ताव प्रदान किया गया। प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत करने वाले अधिनियम के भाग III को अप्रैल 1937 में लागू किया गया था। तदनुसार, 1935 के अधिनियम के तहत 1937 में सात प्रांतीय लोक सेवा आयोगों की स्थापना की गई; 1. असम (शिलांग में),2. बंगाल (कलकत्ता में),3. बॉम्बे और सिंध (बॉम्बे में),4. मध्य प्रांत,बिहार और उड़ीसा(रांची में), 5. बर्मा (रंगून),6. पंजाब और उत्तर-पश्चिम (लाहौर में),7. संयुक्त प्रांत(इलाहाबाद में)।
उ0प्र0 लोक सेवा आयोग का गठन 1 अप्रैल, 1937 को भारत सरकार अधिनियम 1935 की धारा 264 के तहत किया गया था, जिसका मुख्यालय इलाहाबाद में था । 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों (अब, उत्तर प्रदेश) की राजधानी था । इसमें एक अध्यक्ष और दो सदस्य शामिल होने थे । स्थापना के दो दिन बाद श्री डी0एल0 ड्रेक ब्रॉकमैन, I.C.S. ने पहले अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। दो सदस्य, राय बहादुर मान सिंह और खान बहादुर सैय्यद अबू मोहम्मद, 20 अप्रैल, 1937 को नियुक्त हुए। इस आयोग के प्रथम सचिव, राय साहब महेशानंद घिल्डियाल, यू.पी. सचिवालय सेवा के थे। जी.एम. हार्पर( आई.सी.एस.) ने 1 अप्रैल, 1942 को ड्रेक ब्रॉकमैन की जगह ली। उनके उत्तराधिकारी, खान बहादुर मोहम्मद अब्दुल अजीज, अध्यक्ष का पद संभालने वाले पहले भारतीय थे। 31 मार्च 1947 को उनकी सेवानिवृत्ति पर, प्रख्यात शिक्षाविद् और बीएचयू व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उप.कुलपति डॉ अमरनाथ झा ने स्वतंत्रता के बाद प्रथम अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया। डॉ अमरनाथ झा जनवरी 1953 तक अध्यक्ष रहे, दस महीने को छोड़कर, जब तक उन्हें बीएचयू के उप कुलपति के रूप में कार्य करने के लिए आमंत्रित किया गया था । लोक सेवा आयोग में कई महान शिक्षाविदों और प्रशासनिक अधिकारियों ने एक माननीय अध्यक्ष और सदस्य के रूप में अपने ज्ञान और अनुभव से प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है। दिसंबर 1941 में, लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों का पहला “अनौपचारिक” सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया था। आयोग का कार्यालय 1 अप्रैल, 1937 में क्वीन्स रोड (अब सरोजिनी नायडू मार्ग) पर सचिवालय भवन के ब्लॉक नंबर 4 में स्थित था। इमारत को यू.पी. पुलिस मुख्यालय, राजस्व बोर्ड और लोक निर्देश निदेशक (अब शिक्षा) सहित बारह अन्य कार्यालयों द्वारा साझा किया गया था। 1949-50 में आयोग ने वर्तमान परिसर का एक हिस्सा प्राप्त कर लिया, जिसमें मूल रूप से आलीशान इलाहाबाद क्लब और बाद में, अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल था । हालाँकि, 1962-63 में, स्वर्गीय बाबू राधा कृष्ण के प्रयासों से, जब वे अध्यक्ष थे, पूरा आयोग वर्तमान परिसर में स्थानांतरित हो गया था। वर्तमान में प्रधान आयोग कार्यालय के अलावा, एक शिविर कार्यालय प्रदेश की राजधानी, लखनऊ में भी है।
अपने अस्तित्व के पहले वर्ष में (1 अप्रैल, 1937), आयोग ने प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) और प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) परीक्षा आयोजित की, और अपने स्वयं के कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक परीक्षा आयोजित की। पीपीएस में एक पद के लिए सिर्फ बहत्तर उम्मीदवारों ने और पीसीएस में ग्यारह पदों के लिए 244 उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। इसके अतिरिक्त, 320 पदों के लिए साक्षात्कार आयोजित किए गए जबकि 85 पदोन्नति मामलों का निपटारा किया गया। प्रथम राज्य सिविल और पुलिस परीक्षा में, श्री इंद्रदेव नारायण शाही ने सिविल सेवा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और श्री ई.एच.एम (आई) डेविड ने पुलिस सेवाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक) के लिए चयन, अर्थात पीसीएस (जे) को 1939-40 में लोक सेवा आयोग में स्थानांतरित कर दिया गया। 1963-64 में, राज्य लेखा सेवा के गठन के लिए एक विस्तृत योजना सरकार को प्रस्तुत की गई थी। यह बाद में फलीभूत हुआ। उसी वर्ष, आयोग ने सरकार को कई राज्य सेवाओं के लिए एक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा को अपनी योजना को स्वीकार करने के लिए राजी किया। 1972 में जब श्री. ए0डी0 पांडे अध्यक्ष थे, आयोग ने अपनी परीक्षा के संचालन के लिए डाटा प्रोसेसिंग उपकरणों का उपयोग किया। आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति महामहिम राज्यपाल द्वारा विशिष्ट योग्यताओं और विभिन्न क्षेत्रों में विशेष कार्य और अनुभव के आधार पर की जाती है, उसी क्रम में वर्तमान अध्यक्ष श्री संजय श्रीनेत ने 31वें अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया । वर्तमान अध्यक्ष द्वारा वर्ष 2021 में उ0प्र0 लोक सेवा आयोग की शुचिता और पारदर्शिता को दृष्टिगत रख कर “योग्यता का सम्मान, राष्ट्र का निर्माण” को उ0प्र0 लोक सेवा आयोग का “आदर्श वाक्य” घोषित किया, ताकि शासन को कुशल प्रशासक व अधिकारी मिल सकें। सत्यनिष्ठा, न्यायप्रियता, प्रतिबद्धता, गुणधर्मिता व पारदर्शिता जैसे पंच गुणों को यू0.पी0.पी0.एस0.सी0. ने अपनी कार्यशैली का आधार मानकर, आदर्श कार्य संस्कृति का वातावरण निर्मित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है। अक्टूबर 2022 में आयोग ने अभ्यर्थियों के हित के लिए अत्याधुनिक तकनीक को अपनाते हुए वन टाइम रजिस्ट्रेशन (ओ0.टी0.आर0.) की सरल-सुगम सुविधा शुरू की है, जिसके माध्यम से अभ्यर्थियों को बार-बार आवेदन करने जैसी समस्याओं से राहत मिलेगी और आयोग को भी अपने परिणाम जारी करने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को समयबद्धता और गुणधर्मिता तरीके से पूर्ण करने में सहायता प्राप्त होगी । अक्टूबर 2022, में नव-नूतन प्रावधानों को शामिल करते हुए अपनी नव निर्मित वेबसाइट को लॉन्च किया जो आधुनिक कलेवर लेकर अभ्यर्थियों के हितों के लिए और आयोग के कार्य निष्पादन के संदर्भ मे बहुत सारी चीजों को समावेश किए हुए हैं।
समय-समय पर सांविधिक और संवैधानिक प्रावधानों में परिवर्तन को लागू करके और समकालीन पाठ्यक्रम को समायोजित करके, आयोग अपने उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। वर्तमान में आयोग, ग्यारह प्रमुख परीक्षाओं का आयोजन कर रहा है तथा उसके पारदर्शी और निष्पक्ष चयन के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया को वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक मापदण्डों के आधार पर कराया जा रहा हैं। अधिकारियों के चयन के अलावा पदोन्नति, अनुशासनात्मक कार्यवाही, सेवा-नियमों में संशोधन और सरकार को सलाह देने जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी आयोग द्वारा समय-समय पर किए जाते हैं।
Constitutional Provisions:-
Constitutional Powers have been vested in the Public Service Commission vide different articles.
• Article 315. Public Service Commission for the Union and for the State.
• Article 316. Appointment and Term of office of Members.
• Article 317. Removal and suspension of a member of a Public Service Commission.
• Article 318. Power to make regulations as to conditions of service of members and staff of the Commission.
• Article 319. Prohibition as to the holding of offices by members of Commission on ceasing to be such members.
• Article 320. Functions of Public Service Commission.
• Article 321. Power to extend functions of Public Service Commissions.
• Article 322. Expenses of Public Service Commissions.
• Article 323. Reports of Public Service Commissions.
Structure of Organization :-
Functions of the U.P. Public Service Commission:-
a) | Recruitment of the Candidates | |
(i) | On the basis of Interview only. | |
(ii) | On the basis of Screening Test & Interview. | |
(iii) | On the basis of Examination only. | |
(iv) | On the basis of Examination & Interview only. | |
(v) | On the basis of Preliminary Examination, Main Examination & Interview. | |
b) | Recruitment by Promotions as per concerned Service Rule. | |
c) | To provide opinion on all Disciplinary matters affecting a person serving under the Govt. of UP State in civil capacity. | |
d) | To provide opinion on all matters relating to methods of recruitment to civil services and for civil posts i.e. to provide opinion in making of Service Rules. | |
e) | Advice to the U.P. Government. |